भारत में प्राथमिक बाजार (प्राइमरी मार्केट) में निवेश की बढ़ती मांग और आर्थिक गतिविधियों को देखते हुए, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने IPO मंजूरी (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) (IPO) मंजूरी प्रक्रिया में तेजी लाने और इसे और पारदर्शी बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। मार्च 2025 में नए SEBI प्रमुख तुहिन कांता पांडे के नेतृत्व में शुरू किए गए ये सुधार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग, मर्चेंट बैंकरों की स्व-प्रमाणन प्रक्रिया, और कड़े प्रकटीकरण मानदंडों पर केंद्रित हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!SEBI के IPO मंजूरी सुधार: प्रमुख बिंदु
1. मंजूरी समय में कमी (3 महीने में मंजूरी)
SEBI ने IPO मंजूरी की समयसीमा को पहले के 6 महीने से घटाकर 3 महीने कर दिया है। यह सुधार निम्नलिखित उपायों के माध्यम से लागू किया गया है:
- AI का उपयोग: SEBI अब दस्तावेजों में कमियों को स्कैन करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करता है, जिससे मैन्युअल जाँच का समय कम होता है।
- मर्चेंट बैंकरों के साथ त्वरित समन्वय: मर्चेंट बैंकरों से स्पष्टीकरण तेजी से मांगे जाते हैं, जिससे प्रक्रिया में देरी कम होती है।
- स्व-प्रमाणन: मर्चेंट बैंकरों से स्व-प्रमाणन की आवश्यकता बढ़ाई गई है, जिससे दस्तावेजों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और SEBI की टिप्पणियों की संख्या कम हुई है।
2. SME IPO के लिए कड़े नियम
दिसंबर 2024 में SEBI ने SME IPO के लिए नए नियम लागू किए, जो मार्च 2025 में आधिकारिक रूप से प्रभावी हुए। ये नियम पारदर्शिता और निवेशक सुरक्षा को बढ़ाने के लिए हैं:
- पात्रता मानदंड:
- जिन कंपनियों के पास बकाया परिवर्तनीय सिक्योरिटीज हैं (ESOP को छोड़कर), वे SME IPO के लिए पात्र नहीं हैं।
- साझेदारी, LLP, या प्रोप्राइटरशिप से कंपनी में परिवर्तित होने वाली फर्मों को कम से कम एक पूर्ण वित्तीय वर्ष पूरा करना होगा।
- पिछले तीन वर्षों में से दो में न्यूनतम ₹1 करोड़ का EBITDA अनिवार्य।
- प्रमोटर स्वामित्व में 50% से अधिक बदलाव होने पर एक वर्ष का प्रतीक्षा काल।
- फंड उपयोग की निगरानी:
- ₹50 करोड़ से अधिक जुटाने वाली कंपनियों को क्रेडिट रेटिंग एजेंसी नियुक्त करनी होगी।
- छोटे IPO के लिए वैधानिक ऑडिटर को त्रैमासिक फंड उपयोग प्रमाणन देना होगा।
- IPO से प्राप्त धन का उपयोग प्रमोटरों/संबंधित पक्षों के ऋण चुकाने के लिए नहीं किया जा सकता।
- प्रकटीकरण: प्रमोटर समूह के लेनदेन और प्री-IPO प्लेसमेंट को 24 घंटे के भीतर खुलासा करना अनिवार्य।
3. मुख्य बोर्ड में आसान माइग्रेशन
SME प्लेटफॉर्म से मुख्य बोर्ड में माइग्रेशन को आसान बनाया गया है। यदि पोस्ट-इश्यू पेड-अप कैपिटल ₹25 करोड़ से अधिक है, तो कंपनियाँ बिना SME प्लेटफॉर्म पर लिस्ट हुए सीधे मुख्य बोर्ड पर जा सकती हैं, बशर्ते वे मुख्य बोर्ड की आवश्यकताएँ पूरी करें।
4. प्री-फाइलिंग मैकेनिज्म
2022 में शुरू किया गया प्री-फाइलिंग मैकेनिज्म अब अधिक कंपनियों द्वारा अपनाया जा रहा है। यह कंपनियों को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) को गोपनीय रूप से SEBI के पास जमा करने की अनुमति देता है, जिससे बाजार में अनावश्यक अटकलों से बचा जा सकता है। 2025 में अब तक 17 कंपनियों ने इस रास्ते का उपयोग किया, जो 2022-2024 के बीच केवल 4 थीं।
5. निवेशकों के लिए बेहतर पारदर्शिता
- मूल्य बैंड नियम: बुक-बिल्डिंग IPO में न्यूनतम 5% का मूल्य बैंड (105% फ्लोर प्राइस) अनिवार्य किया गया है, जिससे निवेशकों को बेहतर मूल्य निर्धारण मिले।
- प्रकटीकरण मानदंड: कंपनियों को मूल्य निर्धारण पद्धति, कर्मचारी भविष्य निधि (EPF), और साइट विजिट रिपोर्ट जैसे विवरणों का खुलासा करना होगा।
- लॉक-इन अवधि: प्रमोटरों की न्यूनतम हिस्सेदारी (MPC) के लिए 3 वर्ष का लॉक-इन और एंकर निवेशकों के लिए 50% हिस्से का 90-दिन लॉक-इन।
आर्थिक प्रभाव और आँकड़े
2025 में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा IPO बाजार बन गया है, जिसमें $8.2 बिलियन पहले ही जुटाए जा चुके हैं। प्राइम डेटाबेस के अनुसार:
- $13 बिलियन के IPO को मंजूरी मिल चुकी है।
- $18.7 बिलियन के IPO मंजूरी के लिए लंबित हैं।
- प्रमुख IPO में LG इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया, क्रेडिला फाइनेंशियल सर्विसेज, फिजिक्सवाला, और वीवर्क इंडिया शामिल हैं।
2024 में भारत ने $20.5 बिलियन जुटाए, और 2025 में यह राशि $17-20 बिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है। SEBI के सुधारों ने इस गति को और बढ़ाया है, जिससे कंपनियों और निवेशकों दोनों को लाभ हो रहा है।
निवेशकों के लिए निहितार्थ
- तेज मंजूरी, तेज लिस्टिंग: कम समय में मंजूरी से निवेशकों को जल्दी शेयर आवंटन और रिफंड मिलेगा।
- बढ़ी हुई पारदर्शिता: कड़े प्रकटीकरण और फंड उपयोग की निगरानी से निवेशकों का जोखिम कम होगा।
- स्थिरता: एंकर निवेशकों के लिए लंबा लॉक-इन और मूल्य बैंड नियम पोस्ट-लिस्टिंग अस्थिरता को कम करते हैं।
- SME IPO में अवसर: नए नियम छोटे निवेशकों को SME IPO में सुरक्षित निवेश का मौका देते हैं।
चुनौतियाँ और सुझाव
हालांकि SEBI के सुधार सराहनीय हैं, कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- उच्च वैल्यूएशन का जोखिम: विशेषज्ञों ने IPO वैल्यूएशन में एकरूपता की कमी को चिह्नित किया है, खासकर नुकसान उठाने वाली कंपनियों के लिए। SEBI को DCF या EV/EBITDA जैसे मानक वैल्यूएशन फ्रेमवर्क लागू करने चाहिए।
- मुख्य बोर्ड में OFS सीमा: SME IPO में ऑफर फॉर सेल (OFS) 20% तक सीमित है, लेकिन मुख्य बोर्ड में ऐसी कोई सीमा नहीं है, जिससे कंपनियाँ बिना विकास पूंजी जुटाए लिस्ट हो सकती हैं।
सुझाव:
- निवेशक IPO में आवेदन से पहले DRHP का विश्लेषण करें।
- कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन और फंड उपयोग की योजना पर ध्यान दें।
- SME IPO में निवेश से पहले क्रेडिट रेटिंग और ऑडिटर रिपोर्ट की जाँच करें।
निष्कर्ष
SEBI की IPO मंजूरी प्रक्रिया में तेजी और सुधार ने भारत के प्राइमरी मार्केट को और मजबूत किया है। AI का उपयोग, कड़े प्रकटीकरण नियम, और SME IPO के लिए नई पात्रता शर्तों ने निवेशक विश्वास को बढ़ाया है। 2025 में $18.7 बिलियन की पाइपलाइन के साथ, भारत वैश्विक IPO बाजार में दूसरा स्थान बनाए रखने के लिए तैयार है। यह लेख निवेशकों और कंपनियों को SEBI के नवीनतम सुधारों को समझने और उनके लाभ उठाने में मदद करेगा। अधिक जानकारी के लिए SEBI की आधिकारिक वेबसाइट (www.sebi.gov.in) पर जाएँ।
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