FMCG और बैंकिंग : भारतीय शेयर बाजार ने शुक्रवार को सतर्क शुरुआत की, जहां कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और अमेरिका-चीन व्यापार तनाव के बीच एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) तथा बैंकिंग सेक्टर पर दबाव साफ नजर आया। दूसरी ओर, मेटल सेक्टर ने मजबूत प्रदर्शन कर निवेशकों को राहत दी। सेंसेक्स लगभग 84,459 पर खुला, जो 100 अंकों की गिरावट दर्शाता है, जबकि निफ्टी 50 25,900 के नीचे घूम रहा था। यह बाजार की मिश्रित धारा को दर्शाता है, जहां वैश्विक अनिश्चितताएं घरेलू सेक्टरों को प्रभावित कर रही हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!FMCG सेक्टर: कमजोर मांग और मार्जिन दबाव का बोझ
एफएमसीजी सेक्टर, जो आमतौर पर रक्षात्मक माना जाता है, इस बार बाजार की कमजोरी का शिकार हुआ। निफ्टी एफएमसीजी इंडेक्स में गिरावट दर्ज की गई, जो पिछले एक साल में निफ्टी 50 के 9.06% के मुकाबले महज 0.96% की वृद्धि ही दिखा सका। प्रमुख कारणों में कमजोर उपभोक्ता मांग, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और कच्चे माल की ऊंची लागत शामिल हैं। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में वॉल्यूम ग्रोथ फ्लैट रही, जबकि खुदरा मुद्रास्फीति (सीपीआई) अक्टूबर 2024 में 10.08% तक पहुंच गई थी, जिसने घरेलू बचत और खर्च को प्रभावित किया।
हाल के तिमाही नतीजों ने भी चिंता बढ़ाई। हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) का क्यू2एफवाई26 में शुद्ध लाभ 3.6% बढ़कर 2,685 करोड़ रुपये रहा, लेकिन राजस्व में महज 2% की वृद्धि हुई। कोलगेट-पामोलिव का लाभ 17.1% गिरकर 327.5 करोड़ रुपये पर सिमट गया, जबकि नेट सेल्स 6.3% घटे। नेस्ले इंडिया का लाभ 17.4% नीचे आया, हालांकि राजस्व 10.5% बढ़ा। ये आंकड़े बताते हैं कि इनपुट कॉस्ट में वृद्धि और डी2सी (डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर) ब्रांड्स से बढ़ती होड़ कंपनियों की लाभप्रदता को नुकसान पहुंचा रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि छोटी अवधि में सुधार मुश्किल है, लेकिन वित्त वर्ष 2026 में मुद्रास्फीति के सामान्यीकरण (अप्रैल 2025 में 3.16% पर सबसे कम) और कच्चे माल की कीमतों में नरमी से राहत मिल सकती है। प्रीमियमाइजेशन, लागत अनुकूलन और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन जैसी रणनीतियां कंपनियों के लिए कुंजी होंगी। निवेशकों को चुनिंदा स्टॉक्स पर फोकस करना चाहिए, जैसे वे जो उत्पाद नवाचार और वितरण नेटवर्क मजबूत कर रहे हैं। हालांकि, वैल्यूएशन अभी भी ऊंचे हैं – निफ्टी एफएमसीजी 31.41 गुना पीई पर ट्रेड कर रहा है, जबकि निफ्टी 50 21.84 गुना पर।
बैंकिंग सेक्टर: तरलता संकट और एसेट क्वालिटी की चुनौतियां
बैंकिंग शेयरों पर दबाव भी स्पष्ट था, जहां निफ्टी बैंक इंडेक्स में गिरावट आई। वैश्विक स्तर पर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली, जमा वृद्धि में कमी और क्रेडिट ग्रोथ के धीमे होने ने सेक्टर को प्रभावित किया। नवंबर 2025 तक कुल क्रेडिट ग्रोथ 11% पर सिमट गई, जो दशक के औसत 11.4% के बराबर है, लेकिन जीडीपी वृद्धि को बनाए रखने के लिए अपर्याप्त। खुदरा ऋणों में स्लिपेज बढ़े, खासकर पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड और माइक्रोफाइनेंस में।
आरबीआई की सतर्कता ने भी बाजार को प्रभावित किया। महंगाई पर चेतावनी से इनपुट कॉस्ट बढ़ने का डर पैदा हुआ, जो मार्जिन्स को दबा सकता है। आरबीआई ने अप्रैल 2025 से एक्सपेक्टेड क्रेडिट लॉस (ईसीएल) प्रोविजनिंग लागू करने का फैसला लिया, जो बैंकों की पूंजी आवश्यकताओं को प्रभावित करेगा। जमा वृद्धि क्रेडिट से पीछे रहने से तरलता दबाव बढ़ा, जिसके चलते बैंक थोक उधारी पर निर्भर हो रहे हैं।
प्रमुख बैंक जैसे एक्सिस बैंक ने खुदरा एसेट क्वालिटी के सामान्यीकरण में कुछ तिमाहियों का समय लगने की बात कही, जिससे उनके शेयर 4.5% गिरे। आरबीएल बैंक के स्लिपेज में 28% की वृद्धि ने शेयरों को 5.8% नीचे धकेल दिया। हालांकि, कोटक महिंद्रा बैंक ने कम स्लिपेज दिखाकर 9% की बढ़त हासिल की। पीएसयू बैंक जैसे एसबीआई, कनारा बैंक और पीएनबी में 7% तक की वृद्धि देखी गई, लेकिन समग्र सेक्टर चुनौतियों से जूझ रहा है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि अप्रैल 2025 में ब्याज दर कटौती से तरलता सुधरेगी, लेकिन शुरुआत में पीएसयू बैंकों पर मार्जिन दबाव रहेगा। निजी बैंक अधिक लचीले होने से बेहतर स्थिति में हैं।
मेटल सेक्टर: वैश्विक संकेतों से मिली मजबूती
बाजार की नरमी के बीच मेटल सेक्टर ने चमक दिखाई, जहां निफ्टी मेटल इंडेक्स 1.67% चढ़ा और 9,185.20 के इंट्राडे हाई पर पहुंचा। वैश्विक कमोडिटी बाजारों से सकारात्मक संकेत, जैसे इंडोनेशिया की फ्रीपोर्ट ग्रासबर्ग माइन में सप्लाई चिंताएं, ने बेस मेटल्स की कीमतें बढ़ाईं। एलएमई पर एल्यूमिनियम $2,850 प्रति टन से ऊपर चढ़ा।
प्रमुख गेनर्स में ग्रेविटा इंडिया 6.04% ऊपर रही, जैन रिसोर्स 4.57% बढ़ी। वेदांता 3.28%, हिंदुस्तान जिंक 2.83%, हिंदुस्तान कॉपर 3.64% चढ़े। टाटा स्टील, जेएसपीएल और सेल जैसे स्टील प्रोड्यूसर्स में 4% की बढ़त आई। एल्यूमिनियम स्टॉक्स में एनएएलसीओ 5.10%, मान एल्यूमिनियम 9% ऊपर। यह तेजी 2025 की मल्टी-मेटल रैली का हिस्सा है, जहां गोल्ड 67% चढ़कर 1,00,000 रुपये प्रति 10 ग्राम पार कर गया, जबकि सिल्वर 98% ऊपर।
भारत सरकार का 7,350 करोड़ रुपये का रेयर-अर्थ मैग्नेट स्कीम और 11.21 लाख करोड़ का इंफ्रास्ट्रक्चर बजट एल्यूमिनियम डिमांड को 7.2% सीएजीआर से बढ़ावा देगा। हालांकि, चीन, वियतनाम से आयात बढ़ने (24% वृद्धि) से चुनौतियां बरकरार हैं। यूएस टैरिफ्स से उत्पादन भारत में शिफ्ट हो सकता है, जो सकारात्मक है।
प्रमुख सेक्टरों का तुलनात्मक प्रदर्शन (24 अक्टूबर 2025 तक)
| सेक्टर | इंडेक्स परिवर्तन (%) | प्रमुख गेनर/लूजर | कारण |
|---|---|---|---|
| एफएमसीजी | -0.96 (YTD) | एचयूएल (-2%) | कमजोर वॉल्यूम, ऊंची कॉस्ट |
| बैंकिंग | -1.2 (इंट्राडे) | कोटक (+9%) | तरलता दबाव, स्लिपेज वृद्धि |
| मेटल | +1.67 (इंट्राडे) | ग्रेविटा (+6%) | वैश्विक सप्लाई चिंता, कीमतें ऊपर |
निवेशकों के लिए सलाह: संतुलित दृष्टिकोण अपनाएं
यह बाजार चक्र निवेशकों को सतर्क रहने की याद दिलाता है। एफएमसीजी और बैंकिंग में चुनिंदा निवेश करें – जैसे मजबूत बैलेंस शीट वाले बैंक (एसबीआई, एक्सिस) या इनोवेटिव एफएमसीजी (आईटीसी)। मेटल में टाटा स्टील, हिंदाल्को जैसे नाम आकर्षक लगते हैं, लेकिन वैश्विक उतार-चढ़ाव पर नजर रखें। समग्र रूप से, डिफेंसिव सेक्टरों (आईटी, हेल्थकेयर) के साथ साइक्लिकल (मेटल, बैंकिंग) का बैरिबेल एप्रोच अपनाएं।
आरबीआई की नीतियां और क्यू2 आय सीजन बाजार को दिशा देंगे। लंबी अवधि में, भारत की 6.5% जीडीपी वृद्धि और इंफ्रा पुश सेक्टरों को बल देगी। निवेश से पहले वित्तीय सलाहकार से परामर्श लें। बाजार की यह बदलती तस्वीर अवसरों से भरी है, लेकिन जोखिम प्रबंधन जरूरी।
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