देवरिया : कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर मनाया जाने वाला सूर्योपासना का अनुपम महापर्व छठ पूजा 2025 देवरिया जिले में पूरे जोश के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है। 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर तक चलने वाले इस चार दिवसीय पर्व का चरम आज 27 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य के साथ है। जिले के सैकड़ों घाटों, पोखरों और तालाबों पर तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं, जहाँ लाखों व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए एकत्र हो रहे हैं। जिला प्रशासन की ओर से की गई साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और कड़ी सुरक्षा ने इस पर्व को और भी सुरक्षित व भव्य बना दिया है। जिलाधिकारी आशीष अंगवाल सहित मंडलायुक्त व पुलिस महानिरीक्षक ने व्यक्तिगत रूप से घाटों का निरीक्षण किया, ताकि कोई कमी न रहे।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!देवरिया, जो पूर्वांचल का एक प्रमुख कृषि-प्रधान जिला है, छठ पूजा को अपनी सांस्कृतिक पहचान मानता है। यहाँ की मिट्टी में बसे बिहारी व पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रवासियों की आस्था इस पर्व को एक सामूहिक उत्सव का रूप देती है। जिले के रामगढ़ ताल, चकिया घाट, भाटपार घाट और सैकड़ों छोटे-बड़े पोखरों पर सजावट पूरी हो चुकी है। बाजारों में ठेकुए, फल और पूजा सामग्री की खरीदारी जोरों पर है, जबकि महिलाएँ पारंपरिक लोकगीतों के साथ व्रत की तैयारी में जुटी हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सभी को छठ की शुभकामनाएँ दीं, कहते हुए कि “रउवा सब पर छठी मइया के कृपा बनल रहे।”
छठ पूजा का प्राचीन इतिहास: वैदिक सूर्य भक्ति से देवरिया की लोक परंपरा तक
छठ पूजा की जड़ें वैदिक काल में हैं, जहाँ ऋग्वेद में सूर्य को प्राणदाता और जीवन ऊर्जा का स्रोत बताया गया है। यह पर्व छठी माईया (षष्ठी देवी) और सूर्य देव की आराधना पर आधारित है, जो संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत में द्रौपदी ने वनवास के दौरान सूर्य व्रत रखा, जिससे पांडवों को विजय मिली। इसी प्रकार, रामायण में सीता माता ने पुत्र प्राप्ति के लिए छठ उपवास किया। कर्ण, जो सूर्य पुत्र थे, गंगा तट पर अर्घ्य देकर शक्ति अर्जित करते थे। राजा प्रियव्रत की कथा भी प्रसिद्ध है, जिन्होंने इस व्रत से संतान प्राप्त की।
देवरिया में छठ की परंपरा सदियों पुरानी है। जिले के ग्रामीण इलाकों में यह कृषि चक्र से जुड़ा पर्व है, जहाँ किसान सूर्य की किरणों को फसल की उन्नति का कारक मानते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से, यह पर्व ऋतु परिवर्तन के समय मनाया जाता है, जब सूर्य की किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं। उपवास से पाचन तंत्र मजबूत होता है, जबकि मौसमी फल-सब्जियाँ इम्यूनिटी बढ़ाती हैं। देवरिया जैसे क्षेत्रों में यह पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है, क्योंकि घाटों पर प्लास्टिक मुक्त अभियान चलाया जाता है।
देवरिया के घाटों पर तैयारियाँ: साफ-सफाई से सुरक्षा तक की पूरी व्यवस्था
इस वर्ष देवरिया में छठ पूजा की तैयारियाँ अभूतपूर्व स्तर पर हैं। जिले के 200 से अधिक प्रमुख घाटों और पोखरों पर साफ-सफाई, रंगाई-पुताई और बैरिकेडिंग का कार्य पूरा हो चुका है। जिलाधिकारी ने विभिन्न स्थलों का निरीक्षण कर स्वच्छता, प्रकाश व्यवस्था और सुरक्षा पर जोर दिया। मंडलायुक्त महोदय, गोरखपुर मंडल व पुलिस उपमहानिरीक्षक ने भी शहर के पोखरों व घाटों का दौरा किया, जहाँ श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए आवश्यक निर्देश दिए गए।
उपजिलाधिकारी ने घाटों का निरीक्षण कर साफ-सफाई व बैरिकेडिंग के निर्देश दिए। रामगढ़ ताल पर विशेष सजावट की गई है, जहाँ बिजली, पानी, शौचालय और चिकित्सा इकाइयाँ स्थापित हैं। भाटपार घाट पर गोताखोरों और पुलिस की तैनाती कड़ी है, ताकि डूबने जैसी घटनाओं को रोका जा सके। नगर पालिका अध्यक्ष अलका सिंह ने महिला सफाई कर्मियों को सम्मानित किया और छठ सामग्री वितरित की, जो शहर को स्वच्छ रखने वाली इन बहनों की मेहनत का सम्मान है।
हालाँकि, कुछ जगहों पर चुनौतियाँ भी हैं। ग्राम पंचायत सोनाड़ी में साफ-सफाई न होने की शिकायतें आई हैं, जिसे प्रशासन शीघ्र संबोधित करेगा। बाजारों में ठेकुआ, केला, सिंघाड़ा और पूजा सामग्री की भारी खरीदारी हो रही है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति दे रही है। पर्यावरण के लिहाज से, जिला प्रशासन ने प्लास्टिक प्रतिबंध लगाया है, और सोलर लाइट्स की स्थापना की गई है।
सुरक्षा व्यवस्था में 2000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात हैं, ड्रोन निगरानी और ट्रैफिक डायवर्जन प्लान तैयार है। महिलाओं व बच्चों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं। ये प्रयास छठ को एक सुरक्षित सामूहिक उत्सव बनाते हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठान: चार दिनों की तपस्या और देवरिया की सांस्कृतिक धुन
छठ पूजा चार चरणों में मनाई जाती है, जो शुद्धता और समर्पण की मिसाल हैं। पहला दिन ‘नहाय-खाय’ (25 अक्टूबर) स्नान व एक समय सात्विक भोजन से शुरू होता है। देवरिया की महिलाएँ लौकी-चना का प्रसाद बनाती हैं।
दूसरा दिन ‘खरना’ (26 अक्टूबर) कठोर उपवास का है। शाम को गुड़ की खीर और ठेकुआ प्रसाद तैयार किया जाता है। तीसरा दिन ‘संध्या अर्घ्य’ (27 अक्टूबर) मुख्य है, जब अस्त सूर्य को दूध-फल का अर्घ्य दिया जाता है। देवरिया के घाटों पर लाखों लोग लोकगीत गाते हुए एकत्र होंगे, जैसे “कांच ही बांस के बहंगिया…”। चौथा दिन ‘उषा अर्घ्य’ (28 अक्टूबर) उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ समाप्त होता है।
देवरिया में ये अनुष्ठान स्थानीय रंग लिए हैं। चकिया घाट पर भोजपुरी लोकनृत्य होते हैं, जबकि ग्रामीण पोखरों पर मैथिली भजन गूंजते हैं। महिलाएँ मुख्य व्रतधारी होती हैं, जो परिवार की भलाई के लिए तपस्या करती हैं। कोई पंडित या मूर्ति नहीं – यह सीधे प्रकृति से संवाद है। व्रतधारी 36 घंटे निर्जल रहती हैं, जो उनकी भक्ति की गहराई दर्शाता है।
सरकारी पहल और सामाजिक प्रभाव: देवरिया में छठ की एकजुटता
उत्तर प्रदेश सरकार ने छठ को बढ़ावा देने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई हैं, जो देवरिया जैसे जिलों में प्रवासियों को घर लौटने में मदद करती हैं। जिला प्रशासन ने घाटों पर सांस्कृतिक मंच स्थापित किए, जहाँ लोकगीत प्रतियोगिताएँ होंगी। सफाई कर्मियों को सम्मानित करना एक सकारात्मक कदम है, जो समाज में समानता का संदेश देता है।
सामाजिक रूप से, छठ देवरिया में एकता का प्रतीक है। जाति-वर्ग की सीमाएँ मिट जाती हैं, और अमीर-गरीब एक साथ प्रार्थना करते हैं। यह पर्व मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करता है, क्योंकि सामूहिक गायन तनाव कम करता है। युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए स्कूलों में छठ पर विशेष कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।
हालाँकि, यमुना-गोमती जैसे नदियों के प्रदूषण और भीड़ प्रबंधन चुनौतियाँ हैं। प्रशासन ने 2025 में 25% अधिक बजट आवंटित किया है, जो भविष्य के लिए आश्वासन है।
निष्कर्ष: आस्था का प्रकाश जो देवरिया को रोशन कर रहा है
छठ पूजा 2025 देवरिया के लिए एक मील का पत्थर है। घाटों पर पूरी तैयारियाँ, कड़ी सुरक्षा और प्रशासनिक सक्रियता ने इस पर्व को अविस्मरणीय बना दिया है। यह महापर्व हमें सिखाता है कि सूर्य की किरणें सबको समान ऊर्जा देती हैं, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ही सच्ची समृद्धि है।
जैसे ही सूर्य अस्त होता है, देवरिया के घाटों पर अर्घ्य की लहरें उठेंगी। यह दृश्य न केवल आस्था का, बल्कि पूर्वांचल की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक होगा। सभी को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ! जय छठी माईया!
ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे AmarUjala
खबर यह भी पढ़े दिल्ली में छठ पूजा 2025: अवकाश घोषणा और 1300 घाटों पर तैयारि