दिल्ली में छठ पूजा 2025: अवकाश घोषणा और 1300 घाटों पर भव्य तैयारियाँ, आस्था का महापर्व जोड़ता है सबको एक सूत्र में

दिल्ली। छठ पूजा : कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाने वाला छठ महापर्व अब अपने चरम पर पहुँच चुका है। 2025 में यह पर्व 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें नहाय-खाय (25 अक्टूबर), खरना (26 अक्टूबर), संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) और उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) के प्रमुख चरण शामिल हैं। इस वर्ष दिल्ली सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए 27 अक्टूबर को सरकारी अवकाश घोषित कर दिया है, जो संध्या अर्घ्य का मुख्य दिन है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा की गई इस घोषणा ने लाखों बिहारी, पूर्वांचली और झारखंडी प्रवासियों के दिलों में खुशी की लहर दौड़ा दी है। उन्होंने कहा, “छठ पूजा दिल्ली के सबसे बड़े सामूहिक पर्वों में से एक है, जिसमें करोड़ों लोग भाग लेते हैं। यह अवकाश अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के महत्व को ध्यान में रखते हुए दिया गया है।”

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दिल्ली में छठ पूजा 2025: अवकाश घोषणा :

दिल्ली, जो एक बहुलवादी शहर है, छठ पूजा को एक सांस्कृतिक पुल के रूप में देखती है। यहाँ बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड से आए प्रवासियों की संख्या करोड़ों में है, और यह पर्व उनके लिए न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि गृह की यादों को ताजा करने का माध्यम भी। इस वर्ष राजधानी में 1300 से अधिक घाटों पर पूजा की तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं, जिनमें यमुना नदी के किनारे 17 प्रमुख घाट विशेष रूप से सजाए गए हैं। उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना, विकास मंत्री कपिल मिश्रा और लोक निर्माण विभाग मंत्री प्रवेश वर्मा ने व्यक्तिगत रूप से इन घाटों का निरीक्षण किया है, ताकि कोई कमी न रहे।

छठ पूजा का प्राचीन इतिहास: वेदों से महाभारत तक की सूर्योपासना की परंपरा

छठ पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक काल में निहित हैं। ऋग्वेद में सूर्य को जीवनदायिनी ऊर्जा का स्रोत माना गया है, जो पृथ्वी पर हर जीव को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी माईया (षष्ठी देवी) की उपासना पर केंद्रित है, जो संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और समृद्धि का वरदान देती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसकी शुरुआत महाभारत काल से जुड़ी है। जब पांडव वनवास में थे, तब द्रौपदी ने सूर्य देव की कृपा पाने के लिए कठोर व्रत रखा। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने पांडवों को विजय का आशीर्वाद दिया।

एक अन्य कथा कर्ण से संबंधित है, जो सूर्य पुत्र थे। वे प्रतिदिन गंगा तट पर सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी शक्ति प्राप्त करते थे। रामायण में भी सीता माता ने वनवास के दौरान छठ व्रत रखा था, जिससे उनके पुत्रों लव-कुश का जन्म हुआ। राजा प्रियव्रत की कथा भी प्रसिद्ध है, जिन्होंने सूर्य की आराधना से संतान सुख प्राप्त किया। ये कथाएँ छठ को न केवल धार्मिक, बल्कि नैतिक और वैज्ञानिक महत्व प्रदान करती हैं। आधुनिक संदर्भ में, यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है, क्योंकि इसमें जल प्रदूषण मुक्त नदियों और सूर्य की किरणों से विटामिन डी प्राप्ति पर जोर दिया जाता है।

छठ पूजा का वैज्ञानिक पक्ष भी कम महत्वपूर्ण नहीं। चिकित्सा शास्त्रों के अनुसार, सूर्य की किरणें त्वचा रोगों, हड्डियों की कमजोरी और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। चार दिवसीय व्रत में मौसमी फल-सब्जियों का सेवन इम्यूनिटी बढ़ाता है, जबकि उपवास पाचन तंत्र को विश्राम देता है। यही कारण है कि यह पर्व ऋतु परिवर्तन के समय मनाया जाता है, जब सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं।

दिल्ली में छठ पूजा की सांस्कृतिक यात्रा: प्रवासियों का त्योहार जो शहर को रोशन करता है

दिल्ली में छठ पूजा की शुरुआत 20वीं शताब्दी के मध्य में हुई, जब बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मजदूरों का प्रवास बढ़ा। आज यह शहर का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यमुना के तटों पर सजने वाले घाट न केवल पूजा स्थल हैं, बल्कि सामूहिक एकता के प्रतीक भी। 2025 में, दिल्ली सरकार ने पहली बार 1.5 दिन की छुट्टी की घोषणा की है, जिसमें 27 अक्टूबर को पूर्ण अवकाश और 28 को आधा दिन शामिल है। इससे स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे, जबकि बैंक और रेल सेवाएँ सीमित रूप से चालू रहेंगी।

इस वर्ष की तैयारियाँ अभूतपूर्व हैं। 1300 घाटों में से प्रमुख वासुदेव घाट, निगमबोध घाट और इंदिरा गांधी स्टेडियम के पास के स्थलों पर विशेष सजावट की गई है। प्रत्येक घाट पर साफ-सफाई, बिजली, पानी, शौचालय और चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और नगर निगम ने 17 यमुना घाटों पर अस्थायी पुल, लाइटिंग और सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। मंत्री कपिल मिश्रा ने निरीक्षण के दौरान कहा, “हमारा लक्ष्य है कि हर श्रद्धालु सुरक्षित और सुविधाजनक पूजा कर सके। यमुना को स्वच्छ रखने के लिए विशेष सफाई अभियान चलाया गया है।”

सुरक्षा के लिहाज से, दिल्ली पुलिस ने 5000 से अधिक कर्मियों की तैनाती की है। ट्रैफिक डायवर्जन प्लान तैयार है, और ड्रोन से निगरानी की जाएगी। इसके अलावा, महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने घाटों पर प्लास्टिक मुक्त अभियान चलाया है, ताकि नदियों का प्रदूषण न हो। ये प्रयास छठ को एक पर्यावरण-अनुकूल पर्व बनाते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में प्रासंगिक है।

छठ पूजा के अनुष्ठान: चार दिनों की कठोर तपस्या और आस्था का संगम

छठ पूजा चार दिनों का व्रत है, जो शुद्धता और समर्पण की मिसाल है। पहला दिन ‘नहाय-खाय’ (25 अक्टूबर) स्नान और एक समय भोजन से शुरू होता है। व्रतधारियों द्वारा लौकी, कद्दू जैसी मौसमी सब्जियाँ पकाई जाती हैं, जो शाकाहारी और सात्विक होती हैं।

दूसरा दिन ‘खरना’ (26 अक्टूबर) कठोर उपवास का है। शाम को गुड़ की खीर और ठेकुआ का प्रसाद बनाया जाता है, जो अगले दो दिनों के लिए रखा जाता है। तीसरा दिन ‘संध्या अर्घ्य’ (27 अक्टूबर) सबसे महत्वपूर्ण है, जब अस्ताचलगामी सूर्य को दूध, फल और जल का अर्घ्य दिया जाता है। दिल्ली के घाटों पर इस दिन लाखों लोग एकत्र होते हैं, लोकगीत गाते हैं और दीप जलाते हैं। गीतों में छठी माईया की स्तुति होती है, जैसे “हे छठी माईया, बचावन हमरौ जाहि…”।

चौथा दिन ‘उषा अर्घ्य’ (28 अक्टूबर) उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ समाप्त होता है। व्रत समापन पर प्रसाद वितरण होता है, जो सामुदायिक भोज का रूप ले लेता है। इन अनुष्ठानों में कोई पंडित या मूर्ति नहीं होती; यह सीधे प्रकृति से संवाद है। महिलाएँ मुख्य व्रतधारी होती हैं, जो परिवार की भलाई के लिए तपस्या करती हैं।

दिल्ली में ये अनुष्ठान विविधता लिए हुए हैं। कुछ घाटों पर बिहारी लोकनृत्य आयोजित होते हैं, तो कहीं पूर्वांचली महिलाएँ सामूहिक भजन गाती हैं। यह पर्व लिंग, जाति या वर्ग की सीमाओं को तोड़ता है, जहाँ अमीर-गरीब एक साथ प्रार्थना करते हैं।

सरकारी पहल और सामाजिक प्रभाव: छठ पूजा दिल्ली की एकता का प्रतीक

दिल्ली सरकार ने छठ को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। रेलवे ने विशेष ट्रेनें चलाई हैं, और मेट्रो में छठ विशेष कोच जोड़े गए हैं। इसके अलावा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छठ गीतों का प्रसारण हो रहा है। बिहार सरकार से प्रेरित होकर दिल्ली ने भी घाटों पर सोलर लाइट्स लगाई हैं, जो ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहित करती हैं।

सामाजिक रूप से, छठ पूजा प्रवासियों की मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करता है। अध्ययनों के अनुसार, ऐसे सामूहिक पर्व तनाव कम करते हैं और सामाजिक बंधन बढ़ाते हैं। दिल्ली में यह पर्व अब स्थानीय निवासियों को भी आकर्षित कर रहा है, जो सूर्य योग और ध्यान सत्रों के माध्यम से इसमें भाग लेते हैं।

हालाँकि, चुनौतियाँ भी हैं। यमुना के प्रदूषण और भीड़ प्रबंधन को संबोधित करने की आवश्यकता है। सरकार ने 2025 में 20% अधिक बजट आवंटित किया है, जो भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत है।

निष्कर्ष: आस्था, प्रकृति और एकता का संदेश

छठ पूजा 2025 दिल्ली के लिए एक मील का पत्थर साबित हो रहा है। 27 अक्टूबर का अवकाश और 1300 घाटों की तैयारियाँ न केवल धार्मिक उत्साह बढ़ा रही हैं, बल्कि शहर की सांस्कृतिक विविधता को मजबूत कर रही हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि सूर्य की किरणें सबको समान रूप से छूती हैं, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ही सच्ची समृद्धि है।

जैसे ही सूर्य अस्त होता है, दिल्ली के घाटों पर अर्घ्य की धारा बहने लगेगी। यह दृश्य न केवल आस्था का, बल्कि मानवीय एकजुटता का प्रतीक होगा। सभी को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ! जय छठी माईया!

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