छठ पूजा के लोकगीत: 1300 घाटों से लेकर बिहार की गलियों तक, छठ महापर्व के लोकगीत प्रकृति, माँ और सूर्य की उपासना का जीवंत चित्र प्रस्तुत करते हैं। ये गीत मौखिक परंपरा की अमूल्य धरोहर हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी महिलाओं के माध्यम से संरक्षित होते आए हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!परिचय: छठ पूजा के लोकगीत – सूर्य उपासना की सांस्कृतिक धरोहर
छठ महापर्व केवल व्रत और अनुष्ठान तक सीमित नहीं है। यह लोकगीतों का एक ऐसा खजाना है जो बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों की लोक संस्कृति को जीवंत रखता है। दिल्ली में यमुना के 1300 घाटों पर जब लाखों व्रतधारी एकत्र होते हैं, तो हवा में गूंजते भोजपुरी, मैथिली, मगही और अंगिका के ये गीत पूरे वातावरण को भक्तिमय और लयबद्ध बना देते हैं।
“कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…” – यह पंक्ति न केवल छठ की पहचान है, बल्कि लाखों प्रवासियों की गृह-स्मृति भी।
लोकगीतों की उत्पत्ति और विशेषताएँ
ऐतिहासिक जड़ें: वैदिक काल से लोक परंपरा तक
- छठ के गीतों की जड़ें ऋग्वेद में वर्णित सूर्य स्तुतियों से जुड़ी हैं।
- कृषि-आधारित समाज में सूर्य को जीवनदाता मानते हुए मौसमी गीत विकसित हुए।
- महाभारत में द्रौपदी और रामायण में सीता के व्रत से प्रेरित कथाएँ इन गीतों में समाहित हैं।
भाषाई विविधता और संगीत शैली
| भाषा | प्रमुख क्षेत्र | विशेषता |
|---|---|---|
| भोजपुरी | दिल्ली, बिहार, पूर्वी UP | दोहराव, लयबद्ध, सामूहिक गायन |
| मैथिली | मिथिला (बिहार-नेपाल) | कोमल स्वर, मधुर लय |
| मगही | मगध क्षेत्र | तेज लय, ढोलक प्रधान |
| अंगिका | अंग प्रदेश | सरल बोल, ग्रामीण भाव |
वाद्य यंत्र: मंजीरा, ढोलक, हारमोनियम, करताल, खड़ताल।
चार चरणों में गाए जाने वाले प्रमुख लोकगीत
1. नहाय-खाय के गीत: शुद्धिकरण की शुरुआत
गीत: “पहिले पहिल चढ़ल बा सूरुज मलिके…”
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पहिले पहिल चढ़ल बा सूरुज मलिके,
नहाय-खाय के दिनवा ए माई।
कदम के पेड़वा लगल बा घाटे,
लौकी चनवा चढ़ल बा ठाठे...
जय छठी माईया, जय हो!
अर्थ: सूर्योदय के साथ व्रत की शुरुआत। कदम का पेड़ और लौकी-चना प्रसाद का प्रतीकात्मक महत्व। महिलाएँ सूप सजाते हुए यह गीत गाती हैं, जो घर की शुद्धि का संकेत देता है।
2. खरना के गीत: गुड़ की मिठास और ठेकुआ की खुशबू
गीत: “रसिया खेलत गइले खरना में…”
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रसिया खेलत गइले खरना में,
गुड़ के खीर बनवल बा माई।
ठेकुआ चढ़ल बा सूप में,
छठी माईया के नामे...
कांच ही बांस के बहंगिया,
बहंगी लचकत जाए...
विशेषता: यह गीत “कांच ही बांस के बहंगिया” का प्रारंभिक रूप है, जो बाद में संध्या अर्घ्य में चरम पर पहुँचता है। गुड़ की खीर बनाते समय महिलाएँ एकसाथ गाती हैं, जिससे रसोई में भक्ति का वातावरण बनता है।
3. संध्या अर्घ्य के गीत: अस्ताचल सूर्य को समर्पित
मुख्य गीत: “कांच ही बांस के बहंगिया” (पूर्ण रूप)
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कांच ही बांस के बहंगिया,
बहंगी लचकत जाए।
सात गो सूरज के रथवा,
सात गो घोड़ा चढ़ल बा...
उहो सूरज देव के अर्घ्य,
छठी माईया के पूजा...
अर्थ और भाव:
- कांच-बांस की बहंगी: सादगी और श्रम का प्रतीक।
- सात सूर्य और सात घोड़े: सूर्य के रथ का वैदिक वर्णन।
- घाट पर खड़ी महिलाएँ सूप उठाकर यह गीत गाती हैं, जबकि सूर्य डूबने की लालिमा में डूब जाता है।
अन्य लोकप्रिय संध्या गीत
- “उगु ना सूरज देव, भईल बा संझिया…”
- “केलवा के पात पर, उगु ना सूरज देव…” (केले के पत्ते पर सूर्य को अर्घ्य)
4. उषा अर्घ्य के गीत: उगते सूर्य का स्वागत
गीत: “उगु हो सूरज देव, भिंसुरवा में…”
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उगु हो सूरज देव, भिंसुरवा में,
बिंदिया चमकत बा माथे।
छठी माईया के कृपा से,
संतान सुखवा मिलल बा...
जय हो छठी माईया, जय हो!
विशेषता: रात्रि भर जागरण के बाद सुबह यह गीत गाया जाता है। उगते सूर्य की पहली किरण को देखकर व्रतधारी रो पड़ती हैं – यह भावुक क्षण छठ का चरम है।
प्रसिद्ध छठ गायक और आधुनिक प्रस्तुति
| गायक/गायिका | प्रसिद्ध गीत | विशेष योगदान |
|---|---|---|
| शारदा सिन्हा | कांच ही बांस के बहंगिया | शास्त्रीय संगीत में छठ को स्थापित |
| देवी | केलवा के पात पर | मैथिली शैली में कोमलता |
| पम्मी बैरागी | उगु ना सूरज देव | भोजपुरी पॉप फ्यूजन |
| आनंद मोहन | रसिया खेलत खरना में | पुरुष स्वर में दुर्लभ प्रस्तुति |
आधुनिक रूप:
- यूट्यूब और स्पॉटिफाई पर छठ स्पेशल प्लेलिस्ट।
- बॉलीवुड में “पटना से चलल दिल्ली” (फिल्म: तनु वेड्स मनु) में छठ गीत का उपयोग।
- दिल्ली मेट्रो में छठ के दौरान लाइव परफॉर्मेंस।
दिल्ली के घाटों पर लोकगीतों का जादू
वासुदेव घाट, यमुना पुश्ता
- सामूहिक भजन मंडलियाँ: 100+ महिलाएँ एक साथ “कांच ही बांस…”
- लाइव ढोलक-मंजीरा: सुबह 4 बजे से शुरू।
आईटीओ घाट और कश्मीरी गेट
- बिहारी vs पूर्वांचली स्टाइल: भोजपुरी और अंगिका का मिश्रण।
- बच्चों की टोली: “छठी माईया की जय” के नारे।
सांस्कृतिक मंच
- दिल्ली सरकार द्वारा छठ मेला: शारदा सिन्हा जैसे कलाकारों का लाइव शो।
- LED स्क्रीन पर लिरिक्स: नए पीढ़ी के लिए सहायता।
लोकगीतों का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
| पहलू | प्रभाव |
|---|---|
| मानसिक स्वास्थ्य | सामूहिक गायन से तनाव कम, एंडॉर्फिन रिलीज |
| सामाजिक एकता | जाति-वर्ग से परे एकसाथ गायन |
| सांस्कृतिक संरक्षण | प्रवासी बच्चे मातृभाषा सीखते हैं |
| महिला सशक्तिकरण | महिलाएँ मुख्य गायिका, निर्णयकर्ता |
चुनौतियाँ और भविष्य
चुनौतियाँ
- शहरीकरण: पारंपरिक गायन कम हो रहा।
- प्रदूषण: घाटों पर ध्वनि प्रदूषण की शिकायत।
- डिजिटल गैप: बुजुर्ग गीत युवा तक नहीं पहुँचा पा रहे।
समाधान
- स्कूलों में छठ पाठ्यक्रम: लोकगीत सिखाए जाएँ।
- ऐप आधारित संग्रह: “छठ गीतकोष” जैसी पहल।
- वर्कशॉप: दिल्ली के सामुदायिक केंद्रों में मुफ्त प्रशिक्षण।
निष्कर्ष: जब गीत बन जाते हैं प्रार्थना
छठ पूजा के लोकगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि प्रकृति से संवाद का माध्यम हैं। जब दिल्ली के घाटों पर “कांच ही बांस के बहंगिया” गूंजता है, तो वहाँ न केवल सूर्य को अर्घ्य चढ़ता है, बल्कि लाखों दिल एक साथ धड़कते हैं।
“गीत वही सच्चा, जो माँ की गोद में सुना हो… और छठ वही सच्ची, जो गीतों के बिना अधूरी हो।”
इस छठ, जब आप घाट पर जाएँ, तो एक बार इन गीतों को ध्यान से सुनिएगा – शायद आपको अपनी दादी की आवाज़ सुनाई दे…
जय छठी माईया! जय हो लोकगीतों की!
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