जब देश और खेल आमने-सामने आ जाएं, तब फैसला लेना आसान नहीं होता। लेकिन कभी-कभी एक छोटा-सा फैसला, करोड़ों दिलों को छू जाता है। आज की कहानी है एक ऐसे खिलाड़ी की, जिसने मैच तो नहीं खेला… लेकिन देश के सम्मान की सबसे बड़ी जीत दिलाई।
चाय की दुकान और एक शांत चेहरा…
वाराणसी की एक छोटी सी चाय की दुकान पर कुछ लोग TV पर न्यूज देख रहे थे। WCL (World Championship of Legends) 2025 में भारत और पाकिस्तान का बहुप्रतीक्षित मैच रद्द हो गया था। लोग हैरान थे, नाराज़ भी।
लेकिन उसी भीड़ में एक शांत बुज़ुर्ग थे — शिवकुमार मिश्रा, एक रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी। उनके चेहरे पर संतोष था, मानो उन्हें सब पहले से पता था।
एक नौजवान लड़का बोल पड़ा:
“क्या यार, इतना बड़ा मैच और कैंसिल हो गया? ये कौन से खिलाड़ी हैं जो पीछे हट गए?”
शिवकुमार मुस्कराए और बोले:
“कभी-कभी असली बहादुरी बैट उठाने में नहीं, उसे छोड़ने में होती है।”
कुछ दिन पहले…
शिवकुमार मिश्रा का बेटा — आरव मिश्रा, भारत की लीजेंड्स टीम में बतौर ओपनर शामिल था। उसे WCL में पाकिस्तान के खिलाफ खेलने का मौका मिला। यह उसके करियर का सबसे बड़ा मंच था।
आरव ने पिता से पूछा:
“पापा, अगर मैं पाकिस्तान के खिलाफ खेलूं तो आप खुश होंगे?”
शिवकुमार थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले:
“तेरे ताऊजी कारगिल में शहीद हुए थे बेटा… गर्व तब होगा जब तू मैदान से पहले वतन को चुनेगा।”
आरव ने बिना किसी शोर के… बिना किसी बयान के… मैच से नाम वापस ले लिया।
TV पर ब्रेकिंग न्यूज:
“भारत बनाम पाकिस्तान का मुकाबला रद्द, कई प्रमुख खिलाड़ियों ने टीम से नाम वापस लिया। फैंस का कहना है — देश सबसे पहले!”
एक बेटे का मौन बलिदान
आरव ने कोई इंटरव्यू नहीं दिया, कोई ट्वीट नहीं किया। लेकिन उसके पिता की आंखों में जो चमक थी, वो सब कुछ बयां कर रही थी।
शिवकुमार ने चाय का आखिरी घूंट लिया और कहा:
“हमने एक मैच नहीं खेला… लेकिन वतन की लाज रख ली।”
निष्कर्ष (Conclusion):
आज जब क्रिकेट सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक भावना बन चुका है — तब इस तरह के फैसले दिलों को छू जाते हैं। देशभक्ति हमेशा तलवार या बल्ले से नहीं होती, कभी-कभी यह इंसान के ज़मीर से निकलती है।
आपका क्या मानना है? क्या आरव का फैसला सही था?
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“वतन पहले, बाकी सब बाद में…” 🇮🇳